कान या कर्ण शरीर का एक आवश्यक अंग है, जिसका कार्य सुनना (Hearing) एवं शरीर का सन्तुलन (Equilibrium) बनाये रखना है
तथा इसी से ध्वनि (Sound) की संज्ञा का ज्ञान होता है। कान की रचना अत्यन्त जटिल होती है, अत: अध्ययन की दृष्टि से इसे तीन प्रमुख भागों में विभाजित किया जाता है-
- बाह्य कर्ण (External ear)
- मध्य कर्ण (Middle ear)
- अंत: कर्ण (Internal ear)
बाह्य कर्ण या कान (External Ear)-
बाह्य कर्ण के बाहरी कान या कर्णपाली (Auricle or pinna) तथा बाह्य कर्ण कुहर (External auditory meatus), दो भाग होते हैं। कर्णपाली (Auricle or pinna) कान का सिर के पाश्र्व से बाहर को निकला रहने वाला भाग होता है, जो लचीले फाइब्रोकार्टिलेज से निर्मित् तथा त्वचा से ढँका रहता है। यह सिर के दोनों ओर स्थित रहता है। कर्णपाली का आकार टेढ़ा-मेढ़ा और अनियमित होता है, इसका बाहरी किनारा हेलिक्स (Anthelix) कहलाता है।
हेलिक्स से अन्दर की ओर के अर्द्धवृत्ताकार उभार (Semicircular ridge) को एन्टहेलिक्स (Anthelix) कहा जाता है, ऊपर के भाग में स्थित उथले गर्त को ट्रइएन्गूलर फोसा (Triangular fossa) तथा बाह्य कर्ण कुहर से सटे हुए गहरे भाग को कोन्चा (Concha) dहते हैं एवं कुहर के प्रवेश स्थल के सामने स्थित छोटे से उत्सेघ (Projection) को VWªxl (Tragus) कहते हैं।
निचला लटका हुआ भाग (Ear lobule) कोमल होता है और वसा-संयोजक-ऊतक (Adipose connective tissue) से निर्मित होता है तथा इसमें रक्त वाहिनियों की आपूर्ति बहुत अधिक रहती हैं कर्णपाली कान की रक्षा करती है तथा ध्वनि से उत्पन्न तरंगों को एकत्रित करके आिगे कान के अन्दर भेजने में सहायता करती है।