अनेकों कोशिकाओं एवं उनके समूह ऊतकों द्वारा ही शरीर के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है। इन्हीं कोशिकाओं से ही मांसपेशी की उत्पत्ति होती है। मांसपेशी के प्रत्येक तन्तु में अनेक कोशिकाएं होती है। मनुष्य शरीर का अधिकांश वाह्य व आन्तरिक भाग मांसपेशियेां से ढका रहता है। शरीर का ऊपरी हिस्सा पूर्ण रूपेण मांसाच्छादित होने के कारण ही शरीर सुन्दर तथा सुडौल दिखाई देता है। मांसपेशियां अथवा मांस एक लसदार समूह को कहते है।
मांसपेशियां या तो मांस के गुच्छे के रूप में होती है या एक – एक मांस सूत्र के रूप में होती हे। इन पेशियों में ‘संकोचन’ का विशेष गुण पाया जाता है। इस संकुचन के गुण के कारण ही हम अपने हाथ – पाव, सिर आदि शारीरिक अंगों को विभिन्न दिशाओं में घुमा सकते हैं तथा उनके द्वारा विभिन्न कार्य किये जा सकते हैं।
जैसे – मुँह का खोलना, तथा बंद करना, हाथों से लिखना, पाँवों से चललना आदि, हृदय की धड़कन, भोजन का सरककर गले से नीचे उतरा, आँखों की पुतलियों का सिकुड़ना और फैलना आदि भी इन्हीं के कारण सम्पन्न होते है।
पेशियों का नामकरण
पेशियों के नाम उनकी बनावट क आधार पर उनके कार्य के आधार पर शरीर में उनकी स्थिति एवं उनके तन्तुओं की दिशा के आधार पर रखा जाता है। उदाहरण के लिए – कार्य के आधार पर पेशियों का नामकरण – बांह की पेशी Flexor Policies Longs नामक पेशी या आकृृति के आधार पर डेस्टाइड (Deltoid Muscle) जो कि डेस्टा के आकार की है व स्थिति के आधार पर External Intercostals and Internal Intercostals पेशियों के नाम रखे गये है।
पेशियों का उद्गम एवं निवेशन
- उद्गम – उद्गम से तात्पर्य पेशी का वह सिरा जो पेशीय संकुचन होने पर स्थिर अवस्था में होता है। वह सिरा अस्थि जिस हिस्से से जुड़ता है उस स्थल या सम्बन्धित स्थान को उद्गम स्थल कहा जाता है। पेशियों के उनके कार्य के अनुसार उनके उद्गम स्थल में परिवर्तन होते रहते है। पेशी का उद्गम स्थल सामान्यत: अक्षीय कंकाल के अधिक समीप रहता है।
- निवेशन – पेशी के निवेशन का अर्थ पेशी के गतिशील से है। अर्थात् अस्थि के उस हिस्से (स्थल) से पेशी का निवेशन होता हैै। सामान्यत: पेशी का उद्गम अक्षीय कंकाल (Axial Skeleton) के अधिक समीप होता है, तथा निवेशन दूरस्थ जुड़ाव होता है। पेशियों की क्रिया के अनुसार ही इनके उद्गम स्थल परिवर्तित होते है, साथ ही निवेशन स्थल भी परिवर्तित हो जाते है।
पेशियों की बनावट
पेशियों की बनावट पेशी तन्तुओं के विभिन्न आकारों में व्यवस्थित होने के कारण होती है। तन्तुओं की विभिन्न व्यवस्थाओं के फलस्वरूप ही पेशियों की शक्ति, गतिशीलता, स्थिरता, लचीलापन आदि होता है। पेशी के मध्य भाग के लम्बे होने से पेशी में गति अधिक होती है। मोटी पेशी में शक्ति अधिक होती होगी। किसी पेशी में तन्तुओं की संख्या अधिक है तो उस पेशी में शक्ति अधिक होती है।
यह पेशियाँ विभिन्न आकार – प्रकार की होती है। फेशीकिल्स (Fascicles) जो कि कंकालीय तन्तु के छोटे – छोटे गुच्छों के समूह होते है। इसी फेशीकल्स की व्यवस्था तथा उनके टेन्डम्स से जुड़ाव स्ट्रेप पेशी, पंख के समान पीनेट पेशी तथा गोलाकार पेशी मुख की ऑर्बिकुलेरिस ओरिस, आँखों की पेशी आर्बिकुलेरिस ऑक्यूलाइ प्रेशी आदि है। स्ट्रेप पेशी का उदाहरण – गर्दन की स्टर्नोहाइड पेशी उदरीय भित्ती की रेक्टस एण्डोमिनिस पेशी, फ्यूजीफार्म पेशी का उदाहरण – बाँह की बाइसेप्स पेशी, यह तकले के आकार की हाती है।