प्रकश संश्लेषण में CO2 का स्थिरीकरण (अथवा अपचयन) कार्बोहाइड्रेटस (ग्लूकोज C6H12O6 ) मे हो जाता है। पानी का सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में विखंडन (पानी का प्रकाश अपघटन) होकर ऑक्सीजन मुक्त होती है। ध्यान में रखें कि निकलने वाली ऑक्सीजन पानी के अणु से आती है CO2 से नहीं।
प्रकाश संश्लेषण कहाँ होता?
प्रकाश संश्लेषण के हरे भाग मुख्यत: पत्तियाँ, कभी-कभी हरे तने एवं पुष्प कलिकाओं द्वारा भी होता है। पत्तियों की विशिष्टीकृत कोशिकाएँ जिन्हें मीसोफिल कहते हैं, उनके हरितलवक पाये जाते हैं। ये हरितलवक ही प्रकाश संश्लेषण के वास्तविक के्रन्द्र है।
प्रकाश संश्लेषी वर्णक
हरितलवक के थायलेकॉयड में वर्णक होते है जो भिन्न-भिन्न तंरगदैध्र्यो को अवशोषित करके प्रकाश संश्लेषण की प्रकाश रासायनिक अभिक्रियाएं करते है। वर्णकों का कार्य प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित कर उन्हे रासायनिक ऊर्जा में बदलना होता है। ये वर्णक हरितलवक झिल्लियों पर स्थित होते है और हरितलवक कोशिकाओं के भीतर इस प्रकार व्यवस्थित होते है ताकि ये झिल्लियों प्रकाश स्त्रोत के साथ समकोण बनाते हुये रहे और अधिक से अधिक प्रकाश अवशोषण होता रहे। उच्च पादपों में प्रकाश संश्लेषी वर्णकों को दो भागों में बांटा गया है- हरितलवक एवं कैरोटिनायड।
हरितलवक प्रकाश संश्लेषण क्रिया में भाग लेने वाला मुख्य संश्लेषी वर्णक हैं। यह एक बड़ा अणु है तथा यह बैंगनी नीला तथा दृश्य वर्णक्रम के लाल भाग में प्रकाश को अवशोषित करता है तथा हरे प्रकाश को परिवर्तित करता है इसलिए पत्तियाँ हरी दिखती है। कैरोटिनायड (कैरोटीन एवं जैन्थोफिल) वर्णक्रम के उस हिस्से के प्रकाश को अवशोषित करता है जो हरितलवक द्वारा अवशोषित नहीं होता। हरितलवक ‘‘ए’’ सौर ऊर्जा को विद्युत एवं रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित करने वालो प्रमुख वर्णक है। अत: इसे अभिक्रिया केन्द्र कहते है। अन्य दूसरे वर्णक जैसे हरितलवक ‘‘बी’’ एवं कैरोटेनॉयड को सहायी वर्णक कहते हैं क्योंकि ये वर्णक अवशोषित उर्जा को, हरितलवक ‘ए: को स्थानांतरित कर देते हैं वर्णक, जैसे अभिक्रिया केन्द्र (हरितलवक-ए) एवं सहायी वर्णक (हार्वेस्टिंग केन्द्र) एक क्रियात्मक गुच्छों (समुहों) में एकत्र होते है, इन्हें प्रकाश तंत्र कहते है। प्रकाश तंत्र दो प्रकार के होते है – PSI तथा PSII
प्रकाश संश्लेषण में सूर्यप्रकाश का कार्य
सूर्य प्रकाश ऊर्जा की छोटी छोटी कणिकाओं का बना होता है जिन्हें ‘‘फोटोन’’ कहते है। एकल फोटोन को क्वाटम भी कहते है। पर्णहरिम प्रकाश ऊर्जा का अवशोषण करते है। पर्णहरिम अणु प्रकाश ऊर्जा को अवशोषित करके उत्तेजित अवस्था में आ जाता है तथा बाहरी कक्ष में एक इलेक्ट्रान का त्याग कर देता है। कोर्इ भी पदार्थ उत्तेजित अवस्था में अधिक देर तक नहीं रह सकता। अत: ऊर्जा युक्त एवं उत्तेजित पर्णहरिम अणु, निम्न ऊर्जा स्तर अथवा तलीय अवस्था में आ जाता है तथा इस प्रक्रिया में यह अणु ऊर्जा निकलता है। यह ऊर्जा ताप, प्रतिदीप्ती अथवा कुछ कार्य करने में खर्च होती है। प्रकाश संश्लेषण में यह ऊर्जा जल के विखंडन द्वारा भ़् तथा व्भ् आयन बनाने में प्रयुक्त होती है। केरोटिन एक नारंगी एवं पीले रंग का वर्णक हैं। यह पर्णहरिम के साथ थायलेकॉयड झिल्ली में पाया जाता है। कैरोटिन अणु टूट कर विटामिन अणु बनाता है।
जैवरासायनिक एवं जैवसंश्लेषणात्मक अवस्था –
- प्रकाश संश्लेषण की संपूर्ण प्रक्रिया हरितलवक में संपन्न होती है। हरितलवक की संरचना इस प्रकार होती है कि प्रकाश अभिक्रिया तथा अप्रकाशी हरितलवक के विभिन भागों में होती है।
- थायलेकायड में वर्णक तथा अन्य सहायक अवयव पाए जाते है जो प्रकाश को अवशोषित कर इलेक्ट्रॉन स्थानांतरण द्वारा प्रकाश अभिक्रिया अथवा इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रंृखला प्रारंभ करते है।
- इलेक्ट्रॉन परिवहन श्रंृखला में प्रकाश तंत्र I तथा प्रकाश तंत्र II में प्रकाश अवशोषण द्वारा इलेक्ट्रॉन उच्च ऊर्जा स्तर में जाते हैं अर्थात् इलेक्ट्रॉन उत्तेजना- उर्जा उपार्जित कर लेता है। जैसे ही इलेक्ट्रॉन ऊर्जा ग्रहण करता है तो वह इलेक्ट्रॉन ग्राही द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है तथा उसका अपचयन हो जाता है तथा इस प्रकार PSI 680 तथा PSII680 के अभिक्रिया केन्द्र ऑक्सीकृत अवस्था में आ जाते है।
- यह प्रकाश ऊर्जा के रासायनिक ऊर्जा में परिर्वतन को व्यक्त करता है। अब इलेक्ट्रॉन नीचे की तरफ यात्रा करता हुआ, ऊर्जा की भाषा में कहें तो ऑक्सीकरण-अपचयन अभिक्रयाओं की एक श्रृंखला में एक इलेक्ट्रॉन ग्राही से दूसरे इलेक्ट्रॉन ग्राही तक बढ़ता जाता है। यह इलेक्ट्रॉन प्रवाह ATP के निर्माण के साथ जुड़ा होता है । इसके NADP भी NADH2 में अपचयित होता है। प्रकाश अभिक्रिया के उत्पाद जिनमें अपचायक क्षमता (NADPH2 + ATP) होती है। थायलेकायड से निकलकर स्ट्रोमा में आ जाते हैं।
- स्ट्रोमा में द्वितीय चरण (अदीप्त अथवा अप्रकाशी अभिक्रिया अथ्वा जैव संश्लेषणात्मक पथ) जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड, प्रथम चरण में बने अपचायक पदार्थो द्वारा कार्बोहाइड्रेट में अपचयित हो जाती है। इस प्रक्रिया का प्रारंभ प्रकाश तंत्र II (PSII) द्वारा प्रकाश ऊर्जा अवशोषित कर उसे अपने अभिक्रिया केन्द्र P680 को प्रकाश अवशोषित करता है तो यह उत्तेजित अवस्था में आ जाता है तथा इसके इलेक्ट्रॉन, एक इलेक्ट्रान ग्राही द्वारा ग्रहरण कर लिए जाते हैं तथा यह सवयं तलीय अवस्था (निम्न ऊर्जा स्तर) में आ जाता है परन्तु P680 इलेक्ट्रान त्याग कर ऑक्सीकृत हो जाता है तथा जिसके फलस्वरूप ये की क्रिया को प्रकाश अपघटन कहते है। जल के विखंडन से इलेक्ट्रॉनों का निर्माण होता है, जो इलेक्ट्रान ऋणात्मक P680 पर चले जाते है। P680 जिन्होंने पहले अपने स्थानांतरित किए थे, इस प्रकार ऑक्सीकृत P680 पुन: अपने खोए हुए इलेक्ट्रॉनों को जल अपघटन द्वारा त्यागे इलेक्ट्रानों को ग्रहण कर लेता है।
प्राथमिक ग्राही अपने इलेक्ट्रान अपने से नीचे इलेक्ट्रान परिवहन श्रंृखला में त्याग देता है । इलेक्ट्रान अंत में प्रकाश तंत्र (PSI) I के अभिक्रिया केन्द्र P700 में पहुँचाए जाते हैं इस प्रक्रिया मं ऊर्जा मुक्त होती है जो ATP में संचित हो जाती है। इसी प्रकार, प्रकाश तंत्र I(PSI) भी जब प्रकाश ऊर्जा अवशोषित करता है तो उत्तेजित अवस्था में आ जाता है तथा PSI का अभिक्रिया केन्द्र P700 अपने इलेक्ट्रान, इलेक्ट्रान ग्राही को देकर ऑक्सीकृत हो जाता है। ऑक्सीकृत P700 अपने इलेक्ट्रान, प्रकाश तंत्र II से ग्रहण करता है जबकि प्रकाश तंत्र I के प्राथमिक ग्राही अणु अपने इलेक्ट्रानों का स्थानांतरण एक अन्य इलेक्ट्रानवाहक NADP द्वारा NADPH2 बनाने हेतु करते हैं जो कि एक प्रबल अपचायक है। इस प्रकार हम देखते है कि जल के अणुओं से इलेक्ट्रानों का सतत प्रवाह PSII से PSI तथा अंत में छ।क्च् अणु तक होता है जो अपचयित होकर NADPH2 बनाता है। NADPH2 का उपयोग जैवसंश्लेषणात्मक पथ में CO2 को कार्बोहाइड्रेटस में अपचयित करने में होता है।
- CO2 के कार्बोहाइड्रेट में अपचयन के लिए ATP की आवश्यकता होती है जिनका उतपादन इलेक्ट्रान परिवहन श्रृंखला द्वारा होता है। जब उच्च ऊर्जा युक्त इलेक्ट्रान, इलेक्ट्रान परिवहन तंत्र में निम्न स्तर पर जाते हैं तो वे ऊर्जा मुक्त करते हैं यह ऊर्जा अकार्बनिक फास्फेट (Pi) को ADP से जुड़कर ATP बनाती है तथा यह प्रक्रिया फास्फोराइलेशन कहलाती है। क्योंकि यह प्रकाश की उपस्थिति में होती है। अत: इसे प्रकाश-फास्फोरिलीकरण कहते है। यह पर्णहरिम में दो प्रकार से होती है ।
- अचक्रीय-प्रकाश फास्फोराइलेशन: इसमें इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह जल अणुओं से प्रकाश तंत्र II उसके पश्चात् प्रकाश तंत्र I तथा अंत में NADP को NADPH2 में अपचयित करते हुए होता है। क्योंकि इसमें इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह दिशाहीन होता है अत: इसे अचक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण कहते हैं।
- प्रकाश फास्फोरिलीकरण : कुछ परिस्थितियों में जब अचक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण रूक जाता है, चक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण होता है तथा यह केवल प्रकाश तंत्र I (PSI) में होता है। इस प्रक्रिया में इलेक्ट्रॉन ऑक्सीकृत P700 अभिक्रिया केंद्र पर वापस आ जाते हैं । इस प्रकार इलेक्ट्रॉनों के निम्न ऊर्जा स्तर स्थानांतरण से ATP निर्माण होता है तथा इसे चक्रीय प्रकाश फास्फोरिलीकरण कहते हैं।
चक्रीय फास्फोरिलीकरण तथा अचक्रीय फास्फोरिलीकरण की तुलना
चक्रीय फास्फोरिलीकरण | अचक्रीय फास्फोरिलीकरण |
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1. केवल PSI सक्रिय होते हैं । | 1. PSI तथा PSII दोनों सक्रिय होते हैं । |
2. इलेक्ट्रॉन पर्णहरिम अणु से आते हैं तथा वापिस पर्णहरत अणु पर आ जाते हैं । |
2. इलेक्ट्रॉन का स्त्रोत जल है तथा NADP इलेक्ट्रॉन अंतिम ग्राही है । इलेक्ट्रान तंत्र के बाहर चले जाते हैं । |
3. अपचयित NADP (NADPH2) का निर्माण नहीं होता है । |
3. अपचयित NADP अर्थात् NADPH2 का निर्माण होता है जिसका उपयोग CO2 को कार्बोहाइड्रेट में अपचयित करने में होता है |
4. ऑक्सीजन मुक्त नहीं होता है । | 4. ऑक्सीजन उपोपत्पाद के रूप में मुक्त होती है । |
5. यह प्रक्रिया मुख्यत: प्रकाश संश्लेषी जीवाणुओं में होती है । |
5. यह मुख्यत: हरे पौधों में होती है । |
चक्रीय फास्फोरिलीकरण द्वारा अतिरिक्त भी बनाए जा सकते हैं। प्रकाश अभिक्रिया की उर्जा परिवर्तन दक्षता अधिक होती है तथा इसका अनुमानित मान लगभग 39 प्रतिशत होता है।
जैव संश्लेषणात्मक पथ (अंधकार अभिक्रिया)
C3 चक्र केल्विन
C4 चक्र (हैच एवं स्लैक चक्र)
- ऐसे पौधे जल की अल्पमात्रा, उच्च ताप एवं उच्च प्रकाश में भी तीव्रता से उग सकते है- गन्ना, मक्का, ज्वार कुछ ऐसे पौधे है।
- प्रकाश-श्वसन (RUBP का ऑक्सीजन की उपस्थिति में ऑक्सीकरण) इन पौधों में अनुपस्थित होता है। अत: इनमें प्रकाश संश्लेषण की दर उच्च होती है ।
- C4 पौंधो की पत्तियों में एक विशेष प्रकार की संरचना होती है जिसे कै्रन्ज आकारिकी कहते है। C4 पौधों की पत्तियों की विशेषताएं इस प्रकार है-
- पत्तियों में प्रत्येक संवहनी बंडल के चारो तरफ में दूतक कोशिकाओं का एक आच्छद होता है जिसे बंडल आच्छद कहते हैं जिसके कारण इसे कै्रन्ज आकारिकी भी कहते है।
- पत्तियों में दो प्रकार के हरितलवक (द्विरूपक हरितलवक) होते है।
- पत्ती की मीसोफिल कोशिकाओं में अपेक्षाकृत छोटे हरितलवक होते हैं, उनमे सुविकसित ग्रैना भी होते हैं, परंतु इनमें स्टॉर्च एकत्रित नहीं होता।
- बंडल आच्छद की कोशिकाओं के भीतर हरितलवक अपेक्षाकृत बड़े आकार के होते हैं और उनमें ग्रैना नहीं होते बल्कि उनमें असंख्य स्टार्च करण होते हैं ।
- C4 पौधों में CO2का प्राथमिक ग्राही 3 कार्बन अणुयुक्त, फास्फोइनाल पायरूबिक अम्ल अथवा PEP होता है । यह फास्फोइनाल पायरूवेट कार्बोक्सेलेज एन्जाइम की उपस्थिति में CO2 के साथ मिलकर एक चार कार्बनयुक्त अम्ल, आक्सेलोएसिटिक अम्ल बनाता है । CO2 का यह स्थिरीकरण मीजोफिल कोशिका के कोशिका द्रव्य में होता है । OAA इस चक्र का प्रथम चार कार्बन युक्त उत्पाद है अत: इसे C4 पथ भी कहते है।
- OAA मीजोफिल कोशिका से बंडल आच्छद के हरितलवक की ओर जाता है जहां पर ये CO2 को छोड़ता है। इन कोशिकाओं में C3 कोशिकाओं में चक्र चलाता है तथा CO2 तुरन्त RUBP से जुड़कर C2 चक्र द्वारा शर्करा का निर्माण करती है ।
- अत: अप्रकाशी अभिक्रिया के C4 चक्र चलता है तथा CO2 तुरंत RUBP से जुड़कर C3 चक्र द्वारा शर्करा का निर्माण करती है ।
- अत: अप्रकाशी अभिक्रिया के C4 चक्र में दो कार्बोक्सिलोज एंजाइम होते है। 1. PEPCase जो मीजोफिल कोशिकाओं में पाया जाता है तथा Rubiscoजो बंडल आच्छद कोशिका में पाया जाता है ।
C3 एवं C4 पौधों में अंतर
C3 पौधे | C4 पौधे | |
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CO2 का स्थिरीकरण | एक बार होता है | दो बार होता है, प्रथम बार मीजोफिल कोशिकाओं में तथा दूसरी बार बंडल आच्छद कोशिकाओं में A मीजोफिल कोशिकाओं में |
CO2 ग्राही | RUBP एक 5 कार्बन यौगिक |
(फास्फोइनाल-पायरूविक अम्ल) एक 5-कार्बन यौगिक तथा बंडल आच्छद कोशिकाओं में – RuBP |
CO2 स्थिरीकरण एन्जाइम | RuBP कार्बोक्सिलेज, इसकी दक्षता कम होती है । |
REP कार्बोक्सिलेज की दक्षता अधिक होती हैं क्योंकि CO2 की मात्रा अधिक होती है । |
प्रकाश-संश्लेषण का प्रथम उत्पाद पत्ती संरचना |
एक C3 अम्ल PGA उत्पाद केवल एक प्रकार का हरित लवक होता है । |
एक C4 अम्ल जैसे ऑक्सेलोएसिटिक अम्ल के्रन्ज आकारिकी अर्थात दो प्रकार की कोशिकाएँ जिनमें से प्रत्येक में अलग-अलग हरितलवक होता है। |
प्रकाश-श्वसन दक्षता |
ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण के लिए सद्मंदक का कार्य करती है। C4 पौधो की अपेक्षा प्रकाश संश्लेषण की दक्षता कम होती है । उपज प्राय कम होती है । |
अधिक CO2 मात्रा के द्वारा सद्मंदित रहता है इसलिए वायुमंडलीय ऑक्सीजन प्रकाश संश्लेषण को सदमंदित नहीं करती है । C3 पौधो की अपेक्षा प्रकाश संश्लेषण की दक्षता कम होती है । उपज प्राय कम होती है । |
प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करने वाले कारण
1. आंतरिक कारक –
- हरितलवक- हरितलवक की मात्रा का प्रकाश संश्लेषण की दर के साथ सीध संबंध है क्योंकि ये वर्णक प्रकाश ग्राही होता है तथा सूर्य के प्रकाश को ग्रहण करने के लिए उत्तरदायी होता है।
- पत्ती की आयु एवं संरचना- बढ़ती पत्ती में वृद्वि के साथ-साथ संश्लेषण की दर बढ़ती है तथा सर्वाधिक तब होती है जब पत्ती पूर्ण परिपक्व होती है। जैसे पत्ती पुरानी पड़ती जाती है, हरितलवक की कार्यक्षमता कम हो जाती है। पत्ती में प्रकाश संश्लेषण की दर को अनेक विभिन्नताएॅं प्रभावित करती है। जैसे-
- रंध्रों की संख्या, संरचना एवं वितरण ।
- अंतरकोशिकीय स्थानों का आकार एवं वितरण ।
- पैलिसेड एवं स्पंजी ऊतकों का आपेक्षिक अनुपात।
- क्यूटिकिल की मोटार्इ इत्यादि ।
- प्रकाश संश्लेषण पदार्थों की मांग- तेजी से बढ़ते पौधों के प्रकाश संश्लेषण की दर परिपक्व पौधों से अधिक होती है। जब विभाजयो तक को हटाने से प्रकाश संश्लेषण की मांग घट जाती है तो प्रकाश संश्लेषण की दर घट जाती है।
2. बाह्यकारक प्रकाश –
- सीमाकारी कारकों की संकल्पना- जब कोर्इ रासायनिक प्रक्रिया एक से अधिक कारकों से प्रभावित होती है, तब उस प्रक्रिया की दर उस कारक पर निर्भर रहती हैं जो अपने न्यूनतम मान के सबसे समीप हो अथवा सबसे कम मात्रा (या सांद्रता अथवा दर) में उपस्थित होने वाले कारक पर निर्भर करती है। सबसे कम मात्रा वाले कारक को सीमाबद्धकारक कहते हैं। उदाहरण के किए यदि प्रकाश संश्लेषण के लिए जरूरीकारक ताप, प्रकाश एवं CO2 पर्याप्त मात्रा में हों तो प्रकाश संश्लेषण की दर सर्वाधिक होगी, परंतु इनमें से एक भी कारक की मात्रा यदि कम हो तो प्रकाश संश्लेषण की दर घट जाती है। इसे ही सीमाकारी कारकों का नियम अथवा ब्लैकमेन का सीमाकारी नियम भी कहते हैं।
- प्रकाश- प्रकाश संश्लेषण की दर प्रकाश तीव्रता के साथ-साथ बढ़ती जाती है। केवल बादल घिरे दिन में प्रकाश कभी भी सीमाबद्ध कारक नहीं होता। एक विशिष्ट प्रकाश तीव्रता पर प्रकाश संश्लेषण में प्रयुक्त होने वाली CO2 तथा श्वसन के दौरान उत्सर्जित CO2 की मात्रा समान होती है। प्रकाश तीव्रता के इस बिन्दु को समायोजन बिंदु कहते है। प्रकाश का तंरगदैध्र्य भी प्रकाश संश्लेषण को प्रभावित करता है। लाल प्रकाश तथा कुछ हद तक नीला प्रकाश, प्रकाश संश्लेषण की दर को बढ़ा देता है (सक्रिय वर्णक्रम देखें)।
- तापमान- बहुत अधिक तथा बहुत कम तापमान प्रकाश संश्लेषण की दर को कम करता है। प्रकाश संश्लेषण की दर 5o – 37o C तक बढ़ती हैं, परंतु इससे अधिक तापमान होने से इसमें तीव्र गिरावट आती है क्योंकि अधिक तापमान पर अप्रकाशी अभिक्रिया में भाग लेने वाले एंजाइम निष्क्रिय हो जाते हैं। 5o – 37o C के बीच प्रति 10o C तापमान बढ़ते पर प्रकाश संश्लेषण की दर दुगनी हो जाती है अर्थात् Q10 = 2 (Q = गुणांक)।
- कार्बन डाइऑक्साइड- कार्बन डाइऑक्साइड, प्रकाश संश्लेषण की प्रमुख कच्ची सामग्री है । अत: इसकी सांद्रता अथवा मात्रा प्रकाश संश्लेषण को प्रमुखता से प्रभावित करती है। यह वातावरण में अपनी अल्पमात्रा (0.03 प्रतिशत) के कारण प्राकृतिक रूप से सीमाबद्ध कारक के रूप में होती है। अनुकूल तापमान एवं प्रकाश तीव्रता पर यदि CO2 की आपूर्ति बढ़ा दी जाए तो प्रकाश संश्लेषण की दर प्रमुखता से बढ़ जाएगी।
- जल- जल अप्रत्यक्ष रूप से प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करता है मृदा में पानी की कमी से पौधें द्वारा जल हानि को रोकने के लिए रंध्र बंद हो जाएगा। अत: CO2 का वातावरण से अवशोषण नहीं हो सकेगा जिससे प्रकाश संश्लेषण में कमी आ जाएगी।
- खनिज यौगिक- कुछ खनिज यौगिक जैसे, तांबा मैगनीज तथा क्लोराइड इत्यादि प्रकाश संश्लेषी इंजाइमों के हिस्से है तथा मैंग्नीशियम हरितलवक का एक भाग है। अत: ये भी अप्रत्यक्ष रूप से प्रकाश संश्लेषण की दर को प्रभावित करते हैं, क्योंकि ये हरितलवक तथा एंजाइमों के मुख्य घटक है।
रसायनी संश्लेषण
- नाइट्रीकरण जीवाणु-नाइट्रोसोमोनास- ये NH3 को NO2 में ऑक्सीकृत करते हैं ।
- सल्फर जीवाणु ।
- लौह-जीवाणु
- हाइड्रोजन एवं मीथेन जीवाणु ।
रसायन – संश्लेषी एवं प्रकाश संश्लेषण में अंतर
रसायन संश्लेषी | प्रकाश संश्लेषी |
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1. यह केवल रंगहीन वायवीय जीवाणुओं में होता है। |
1. यह हरे पौधे एवं हरे जीवाणुओं में होता है। |
2. इस प्रक्रिया में CO2 का कार्बोहाइड्रेट में अपचयन हरितलवक एवं प्रकाश की अनुपस्थिति में होता है। |
2. CO2 एवं H2O प्रकाश एवं हरितलवक की उपस्थिति में कार्बोहाइड्रेट में परिवर्तित हो जाते है । |
3. यहाँ अकार्बनिक पदार्थो के ऑक्सीकरण से निकली ऊर्जा का उपयोग कार्बोहाइड्रेट के संश्लेषण में होता है। |
3. प्रकाश ऊर्जा रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है तथा कार्बोहाइड्रेट रूप में संचित हो जाती है। |
4. इस प्रक्रिया में कोर्इ वर्णक भाग नहीं लेता है तथा ऑक्सीजन भी मुक्त नहीं होती है । |
4. अनेक वर्णक भाग लेते है तथा ऑक्सीजन उपोत्पाद के रूप में मुक्त होती है। |
5. इसमें प्रकाश फास्फारिलीकरण नहीं होता है । |
5. प्रकाश फास्फारिलीकरण होता है अर्थात् ATP का निर्माण होता है। |